कुछ शायरी

फिर उठी दिल में मेरे कसक क्यों है
तेरा इंतज़ार अब तलक क्यों है
फिर उठी .....

जाने क्यों लम्बी सी ख़ामोशी है आँखों में मेरी
और जुबान से भी तेरा नाम नहीं निकलता
कैसे कहूँ तू लौट आ साहिब मेरे
अपनी सब गुस्ताखियाँ याद मुझे
नहीं आओगे तो ये भी तस्सली होगी
हाँ तुम बेवजह तो नहीं रूठे जा रहे
और लौट आओ तो ये मोहबत तेरी
वरना ज़िंदा तो नहीं पर जिए जा रहे

साज़ खामोश हो चले बजते हुए
आँख पथरा गयी है तकते हुए
जलवा ए यार जाने कब होगा
मोहन !दीदार जाने कब होगा

मैंने तेरे मयखाने में पीने की आरज़ू की
गौर से देखा तो
पीने वाला भी तू
पिलाने वाला भी तू

मुझे शायर बना दिया मोहबत ने तेरी
और हर लफ्ज़ को बोलता है तू

मदहोश हो रहे हैं तेरे आगोश में आकर
तू मेरी बेकरार मोहबत का कोई नाम रख

कौन पार करना चाहता है तेरे इश्क़ का सागर
यहां तो डूबने के इरादे से सनम आये है हम

तूने याद किया तो तेरी याद आई
वरना मेरी क्या औकात की पुकारूँ तुझको

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