कतरा कतरा मौत
दे कतरा कतरा मौत मुझे
अब इंतज़ार नहीं होता
क्यों पर्दा नहीं हटाते तुम
क्यों दीदार नहीं होता
क्या शांत सी मूरत हो जाऊँ
दिल बेकरार नहीं होता
क्यों मची है भीतर ये हलचल
क्या दिल बेकार है रोता
क्यों नहीं आते तुम पर्दे से
अब इंतज़ार नहीं होता
अब बिगड़ी मेरी बना भी दो
दिल ज़ार ज़ार है अब रोता
क्या देखोगे मुझको तुम यूँ
रोती सी बिलखती टूटी सी
क्या प्रीत की रीत नहीं जानी
क्या ऐसे प्यार नहीं होता
सुनती हूँ तुम आ जाते हो
हर प्रेमी की पुकार सुन कर
या तो प्रेम नहीं मुझे कह दो
क्यों ये दरकार नहीं होता
कह दो नहीं जानती कुछ भी
कह दो तेरा प्रेम झूठा है
इक बार तो पर्दा हटा ही दो
क्या ये सरकार नहीं होता
क्यों दिल मेरा वीरान हुआ
फिर आंधी आई तूफ़ान मचा
वो बहार कुछ पल क्यों आई
क्यों दिल गुलज़ार नहीं होता
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