जाने क्यों खुद से
जाने क्यों खुद से अनजान होना चाहती हूँ
आज मैं दिल का तेरे अरमान होना चाहती हूँ
जाने क्यों खुद से.......
खुद को भूलूँ तो तू ही रहता है बाक़ी
मय पिलाता है मुझे बन कर तू मेरा साक़ी
आज मैं तेरे लिए कुर्बान होना चाहती हूँ
जाने क्यों खुद से.......
तू ही रह जाए हर अरमान में मेरे सनम
तेरी बाँहों में सुकूँ से मेरा निकले ये दम
खोकर तेरे आगोश में बेजान होना चाहती हूँ
जाने क्यों खुद से......
हो रहा है मुझे नशा तेरी मोहबत का अभी
रह लूँ बाँहों में तेरी छोड़ना ना मुझको कभी
आज मैं थोड़ी सी नादान होना चाहती हूँ
जाने क्यों खुद से.......
है ख्वाहिश की ये इश्क़ यूँ ही आबाद रहे
मुझे बस तू और तेरा इश्क़ ही याद रहे
आज तेरे कदमों के निशान होना चाहती हूँ
जाने क्यों खुद से........
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