तेरे शहर को सजदा

तेरे शहर को भी सज़दा है मेरा
सज़दा है सभी बाशिंदों को भी
मैंने क्यों चाहत रख ली कोहिनूर की
जब मेरी कोई भी हस्ती ही नहीं
हाँ निकलते हैं हीरे कई खादानों से
मगर कोयले की बहुतात रहती है
मैं भी हूँ काला सा कोयला कोई
जलना ही है फितरत और किस्मत मेरी
हाँ मेरे जलने से भी कोई सुकून हो तुझको
तो कोयला बनना भी खुशकिस्मती मेरी
और मेरी सरकार बनूँ क्या मैं
ख़ाक होना ही है अब हस्ती मेरी

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