कोई बेहद इश्क़ करता है
कोई है जो बेहद इश्क़ करता है
आईने में भी वही अक्स दिखता है
मुझे गिर गिर सम्भलने की आदत हो गयी
हाथ तो दिया तुमने पर थाम न सकी
शायद यही कबूल होगा मुक्क़दर को मेरे
तेरा इंतज़ार ही मेरा नसीब था
देखो यूँ न अक्स बदल बदल आया करो
हर अक्स से मुझे इश्क़ होने लगता है
पहले ही सब दीवाना समझते हैं काफिर को
देख देख तुझको ये दिल रोने लगता है
कुछ तो होश में रहने दो मुझे
पहले ही काम से काम नहीं रहता
इश्क़ का झूठा ही दम भर देती
लब पर तो तेरा नाम नहीं रहता
साहिब ए आलम यूँ ही बेकरारी रहे
तू रहे तेरे इश्क़ की खुमारी रहे
नहीं होश आये मुझे तो बेहतर होगा
तेरे पहलू में गुज़रती उम्र अब सारी रहे
अजी क्या हाल भी पूछते हो कभी
देखो इस तरह कत्ल नहीं करना मेरा
कोई तौहीन भी करे इश्क़ की तेरे
मुमकिन नहीं यूँ सब्र करना मेरा
हाय दिल्लगी भी गज़ब की तुम्हारी
इश्क़ करना मुझे भी सिखा दो तुम
तुम से ही सीख़ तुम्हें इश्क़ करूँ कभी
हुनर ऐसा भी कोई बता दो तुम
इधर कोई गुस्ताख ही है साहिब
देखो यूँ नहीं इश्क़ करना मुझसे
बन गयी है आदत गुस्ताखी की
देखो यूँ नहीं इश्क़ करना मुझसे
खुद के वजूद से नफरत है मुझको
क्यों मैं अब तलक ज़िंदा हूँ
गुस्ताखियाँ क्यों बन गयी फितरत मेरी
खुदा मेरे मैं कितनी शर्मिंदा हूँ
कैसे कहूँ करना है इश्क़ तुमसे
कैसे कहूँ तेरे शहर का बाशिंदा हूँ
पर तो दिए तुमने ऊँचा उड़ने को
बार बार गिरा वही परिंदा हूँ
क्या दूँ तुम्हें साहिब गुस्ताखी के सिवा
तुमने इश्क़ के सिवा कुछ दिया नहीं
भर देते हो मुझको इश्क़ से अपने तुम
मैंने जाने कभी सज़दा किया ही नहीं
हर बार शर्मिंदा हूँ जब आईना देखूं
अब मुझे खुद से भी नफरत हो चली
फिर से गम की काली रात है
चाहे तेरे इश्क़ की बरसात है
नहीं लेना महबूब मुझको बाँहों में
देखो खत्म हुई मुलाकात है
देखो यूँ नहीं इश्क़ करो मुझसे
नहीं नहीं मेरी नहीं औक़ात है
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