कहां छिपोगे
अब कहाँ छिपोगे साहिब
तेरा पता मिल गया मुझे
कहाँ नहीं हो तुम
कभी एहसास बन
रूह को छू गए
कभी छिप गए
अब कहाँ छिपोगे
हँसती हुई हर कली
तेरा पता बताती है
तुम वहीं तो हो
आसमान में वो बादल से
जो बन गए काली घटा
बरस गए
मेरी प्यास बुझाने को
वो धूप जो मुझे सुकून देती है
सूरज चाँद तारों में भी
तुम ही तो हो
दिन रात मुझसे मिलते
हाँ छिपते हो
मैं देख रही तुम्हें
अब हर और ही तुम
ये हवा जो छू कर जा रही
तेरा ही एहसास
और भी पास
और भी पास
हर साँस में
तुम ही तो हो
छू रहे मेरी रूह की
अब साँस बन गए हो
तो कहाँ जाओगे
साँस भी रुक गयी
तो ये रूह लौट जायेगी
तुम्हारे ही साथ
कभी अलग नहीं होगी तुमसे
हाँ साहिब
मुझे तेरे एहसास हुआ
तब हुआ
जब तुम चाहे
तुम तो पहले भी थे
शायद छिपने में मज़ा था
फिर भी
जैसे तुम चाहो
तुम जा नहीं सकते अब
क्योंकि
तुम मेरे हो
मेरे कान्हा
मेरे कान्हा
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