अनबुझी प्यास

मिलकर भी मिले नहीँ हो तुम
ये कैसा मेरे एहसास है

कभी लगता है दूर बहुत हो
कभी लगता है पास है

मिलकर तुमको खुश हुआ मन
बिछड़ के रूह उदास है

तुम आओगे जरूर इक दिन
मन में लगी ये आस है

मुझको खुद पर नही भरोसा
तुम पर ही विश्वास है

जितना मिले तुम उतनी बढ़ी
ये अनबुझी सी प्यास है

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