मेरे नसीब में अब तेरा
मेरे नसीब में तेरा दीदार अब नहीँ है
मैं जानती हूँ तुझे मुझसे प्यार नहीँ है
होती अगर मैं काबिल कदमों में बैठा लेते
नहीँ आता सज़दा करना मुझको भी सिखा देते
लब पर तेरे वफ़ा का इज़हार अब नहीँ है
मेरे नसीब में तेरा......
रहमते हर किसी पर पल पल बरसती हैं
प्यासी ये मेरी आँखें जाने क्यों तरसती हैँ
बादल बन बरसना क्यों सरकार अब नही है
मेरे नसीब में तेरा.......
चाहे नहीँ हूँ काबिल फिर भी तेरी तलब है
तुझसे ही इश्क करना मेरे जीने का सबब है
है इंतज़ार तेरा क्यों इज़हार अब नही है
मेरे नसीब में तेरा........
Comments
Post a Comment