नींदें भी बेताब

आज नींदे भी बेताब हुई जाती हैं
क्या तेरा ख्वाबों में आने का वादा है
क्यों दिल के दर्द कम नहीँ होते
क्यों बेकरारी अब और ज्यादा है

नींद मुझको तो बेचनी है अपनी
क्या मोल खरीदोगे तुम साहिब
कह दो बिनमोल ही बिक जाऊं
मेरा भी यूँही कुछ इरादा है

तेरे दर्द भी सारे कबूल मुझे
ये हसते हुए सब मैंने जिए
अब दर्द समाए ना दिल में
पहले से बढ़ा कुछ ज्यादा है

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून