बिरहन को सुधि ही नहीँ
साँझ ढली कब भोर भई
बिरहन को कोई सुधि ही नहीँ
तेरी शरण पड़ी कुञ्ज बिहारी
कृपा करो तुम कृपामयी
निसदिन अखियाँ जल बरसावें
श्याम छवि लखे बिन चैन पावें
हिय की अग्नि से राख भई
कृपा करो तुम कृपामयी
इस बिरहन को सुधि ही नहीँ
दो अब प्रेम सुधा की भिक्षा
कब पूरी हो प्रेम प्रतीक्षा
प्राण चले ऐसी व्यकुलता भई
कृपा करो तुम कृपा मई
इस बिरहन को सुधि ही नहीं
तुम बिन कौन सुधि ले बनवारी
मैं पातक तुम पतित उद्धारी
बाट निहारे पाषाण भई
कृपा करो तुम कृपा मई
इस बिरहन को सुधि ही नहीँ
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