ये तेरा घर नहीं

ये तेरा घर नही अब और कहीँ चल
तुझे बुला रही है जो है तेरी मन्ज़िल

कब से भटका था राहों में अब ठहर जा जरा
मन्ज़िल न मिली क्यों तेरा दिल ना भरा
फिर पछतावा  होगा समय जो जायेगा निकल
ये तेरा घर नहीँ........

दूर है घर से तू अपने क्यों रुका जाता है
क्यों झूठी सी चमक पे ही बिका जाता है
क्यों नहीँ होती तेरे मन में ऐसी हलचल
ये तेरा घर नहीँ........

अपने अक्स को पहचान अब मुड़ तो ज़रा
क्यों तेरे भीतर सब झूठ ही रहता है भरा
अब अपने ही मालिक से तू जाके मिल
ये तेरा घर नहीँ.........

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