पीड़ हरो जन की
गोविन्द पीड़ हरो जन की
माधव पीड़ हरो मन की
मैं हूँ पापी अधम पातकी
निर्धन पापी अधम पातकी
करता हूँ मन की
गोविन्द पीड़ हरो जन की
माधव पीड़ हरो मन की
नहीँ कोई जप नहीँ कोई साधना
बन नहीँ पाये प्रभु कोई आराधना
सुरति मुझे तन की
गोविन्द पीड़ हरो मन की
माधव पीड़ हरो मन की
नहीँ कोई प्रेम नहीँ कोई सेवा
तुम शरणागत और ना देवा
भिक्षुक प्रेम धन की
गोविन्द पीड़ हरो मन की
माधव पीड़ हरो मन की
नहीँ कोई साधन नही कोई दीक्षा
मुझे बस तेरी प्रेम प्रतीक्षा
सुधि लो निर्धन की
गोविन्द पीड़ हरो मन की
माधव पीड़ हरो मन की
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