बरस रहीं है बारिशें
बरस रहीं हैं बारिशें तेरे इश्क की
और हम रह रह के भीग जाते हैं
पी रहें हैं जो मय तूने पिलाई है
जो हमें सिखाये सब सीख जाते हैँ
तलब है बस तेरी ही तेरे ही इश्क़ की
जन्नत की भी अब परवाह नहीँ है प्यारे
तेरी रज़ा में राज़ी होना सीख जाते हैं
बरस रहीं हैं बारिशें तेरी इश्क़ की
और हम....
क्यों इतना बरस रहे हो मदहोश कर रहे हो
काबू नहीँ है खुद पे बेहोश कर रहे हो
हम जब भी तेरे करीब जाते हैं
बरस रहीं हैं बारिशें तेरे इश्क़ की
और हम......
उल्फ़त का ये असर है की हम हम नहीँ हैं
हैं खत्म अब ख्वाहिशें कोई भी गम नहीँ है
जाग रहे सोये सब नसीब जाते हैं
बरस रहीं हैं बारिशें तेरे इश्क़ की
और हम......
Comments
Post a Comment