खुद ही करो अपने काबिल
हर चाह बनो तुम मनमोहन
और कोई ना चाह करे ये दिल
अब सम्भलते नहीं हालात मेरे
दिल बेकाबू सब है मुश्किल
छुप छुप कर अश्क़ बहाते हैं
और देते हैं जख्मों को सिल
कभी लगता है तुम नहीं आओगे
मैं हूँ नहीं तेरे प्यार के काबिल
पर कैसे छोड़ दूँ रस्ता तेरा
तू ही रस्ता तू ही मन्ज़िल
हो चुके बेपरवाह इस दुनिया से
नहीँ तम्मना की कुछ हो हासिल
जल रही तेरे इश्क़ की आग अभी
बनूं खाक मेरी अब यही मन्ज़िल
आ जाओ ये भी नहीं तम्मना मेरी
मुझे खुद ही करो अपने काबिल
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