मेरी नज़रों में बसो ओ कन्हिया

मेरी नज़रों में बसो ओ कन्हैया
मेरे नज़रों से क्यों दूर हो तुम
मिलकर भी नहीं मिलते मुझसे
मेरी तरह क्या मज़बूर हो तुम

क्यों है पर्दे बड़े श्याम प्यारे
बेसहारों के तुम हो सहारे
बीच मझधार में मेरी नैया
अब तो मोहन लगादो किनारे
तुमने की है मोहबत जो मुझसे
तो निभाते भी दस्तूर हो तुम
मेरी नज़रों में ..........

सुना है आँखों में तेरी है मस्ती
फिर बाँवरी तेरी क्यों है तरसती
इक नज़र भी इधर कर दो कान्हा
कब से ऑंखें मेरी हैं बरसती
देखो वादा तो निभाना ही होगा
जो निभाने में मशहूर हो तुम
मेरी नज़रों में...........

तेरे दीवाने सब सिरफिरे हैं
तेरे दीदार को ही खड़े हैँ
क्यों हटाते नहीं हो तुम चिलमन
क्यों दरमियाँ इतने पर्दे पड़े हैं
एक दिन तो हटाओगे पर्दे
क्योंकि नज़रों के अब नूर हो तुम
मेरी नज़रों में..........

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