कभी तुम्हें सजदे करती हूँ

कभी तुम्हें सजदे करती हूँ

कभी तुम्हें ढूंढती हूँ मैं

तुम अब ये बताओ मुझको

कहाँ तेरा ठिकाना है

क्या मेरी ही रूह हो तुम

क्या तेरी ही रूह हूँ मैं

क्या हो तुम अब भी जुदा मुझसे

कभी तुम पास लगते हो

कभी तुम दूर लगते हो

क्यों ऐसे तुम सताते हो

मिलकर भी फिर छिप जाते हो

शायद यही खेल है सब कुछ

मुझे नहीँ जानना अब कुछ

यूँ ही घुलती घुल जाऊं

यूँ ही बस मिलती मिल जाऊं

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून