प्रेमी के मन का उत्साह

*प्रेमी के मन का उत्साह- प्रियतम की प्रेम रीति*

प्रेम ही प्रेम को ढूंढता है, प्रेम ही प्रेम का पोषण करता है, प्रेम का असन बसन सब प्रेम ही हो जाता है। प्रेम ही प्रेम को भरता है, प्रेमी के मन का उत्साह प्रेम को ही सुख देना , प्रेम की ही सेवा करना है। श्रीप्रियाप्रियतम प्रेम के अथाह सिन्धु हैं।श्रीलाल जु के हृदय का समस्त अनुराग श्रीप्रिया रूप में मूर्तिमान हो गया है, वहाँ लाल जु की समस्त हृदय अभिलाषाएं अपनी स्वामिनी के कैंकर्य रूप में प्रकट होती हैं, उनके नेत्र उनका हृदय अपनी स्वामिनी के नेत्रों और हृदय का अनुगमन करता रहता है वही प्यारी जु का हृदय उन्हें प्रेम से नव नवायमान करता है।इस प्रकार हमारे हृदय की सम्पति नव दम्पति की मधुर मधुर केलि नव नवायमान होती जाती है।

श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन

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