अश्कों के पीछे
अश्कों के पीछे आज हमने कुछ आग है दबाई
धीरे धीरे से जल रहे हैं भा रही है सुलगाई
इस आग में फनाह हो ही जाए वजूद सारा
तिल तिल कर मरना अब शौक हो गया हमारा
बारिशें बरसती हैं बाहर तपिश फिर भी अंदर
लहराता है भीतर जैसे कोई अनकहा समन्दर
बस डूब उसी समन्दर में ही खुद को भुलाना है
इश्क़ करना नहीं है अब हमें इश्क़ हो जाना है
कुछ लफ़्ज़ों में उतरा है कुछ भीतर भरा रहा
ज़ख्म रिसता है बाहर से भीतर तक हरा रहा
हाँ मुझे अब दर्दों का ही कुछ शौक हो चला
राह ए इश्क़ आसान नहीं कोई बेरोक हो चला
अब परवाह भी नहीं है कोई दर्दों की तूफान की
इश्क़ की मंजिल मिलती है कोई राह चले श्मशान की
जहाँ जिंदा रहकर भी खुद की चिता जलानी होती है
इश्क़ ही रहता है बाक़ी सब याद भुलानी होती है
आज मैंने फिर अपनी बर्बादी का ही जश्न मनाया है
सच पूछो दिल ए आह से बड़ा ही सुकून पाया है
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