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दीनन कौ हाथ तुम हरिहौं

अधम पातकी भोगी बाँवरी कौन विध त्रयताप जरिहौं

नाम की नाव बनाय हरि जी देत चुकाई पार उतरिहौं

कृपा कीजौ नाथा दीन होय बाँवरी स्वाद भजन कौ परिहौं

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