22

हरिहौं सगरे भोग छुड़ावो
भजनहीन कंगाल बाँवरी नामधन देय धनवान बनावो
भोग स्वाद न लागै नीको साँचो स्वाद नाम कौ दीजौ
मो निर्बल कौ बल न हरिहौं आपहुँ हाथ बढ़ाय कीजौ
कबहुँ हिय लगै साँची चटपटी कबहुँ बाँवरी हरिरस पावै
कबहुँ उन्मत्त होय हाथ उठाय साँचो नाम हरि कौ गावै

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून