प्रीति न कीन्हीं साँची
हरिहौं मैं प्रीति न कीन्हीं साँची
बाँवरी पतिता जन्म जन्म की विषय भोग रँग राँची
विषय भोग रँग राँची हरिहौं नाम कौ नेम न भावै
विषयन भोग होय अति गाढ़े हिय प्रेम नाँहिं हुलसावै
कौन विधि तेरी बात बनत रही भजनहीन पसु समाना
बिरथा रसना मुख रखावै बाँवरी न होय हरिनाम कौ गाना
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