हरिहौं भोगी जन
हरिहौं भोगी जन होऊँ भारी कबहुँ नाय लजाऊँ
प्रेम विहीना जग वीथिन घूमूँ कबहुँ नाय सकुचाऊँ
प्रेम सौं हिय न फूले कबहुँ होय पाथर सौं कठोरा
जो साँचो चरणन नेह न लाई कोऊ मिलै न ठौरा
सेवा लोभ न हिय लगै कभी न कबहुँ हिय अकुलावै
बाँवरी जन्म जन्म करै बिरथा युगलनाम न गावै
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