बेवजह
चलो थोड़े दर्द दो हम दर्द सजा लेंगे
अपनी बेवफ़ाई का ही हम जश्न मना लेंगे
माना कि नहीं भूल सकते तुम हमको एक पल भी
नाकाम सी कोशिश हो हम तुमको भुला लेंगे
तुमको पुकारना भी तो कहाँ सीखा है कभी हमने
मुद्दत से यूँ खड़े हैं सोचा था सुधार लेंगे
क्या दे सकेंगे तुमको है रग रग में बेवफ़ाई
पर इश्क़ जो तुम्हारा पल भी भुला न पाई
चलो हमको बेवफ़ाई की कोई तो अब सज़ा दो
क्यों है कोई निशान बाक़ी सारे निशां मिटा दो
जिस दिल में न हो इश्क़ कोई बेकार है उसका जीना
काश कोई दर्द दिल मे उठता मिलता कोई अश्क़ पीना
पर सच है बड़े सुकून में हैं हम तुमसे दूर होकर
बेवज़ह सा ही जी रहे हैं सब जीने की वजह खोकर
इन आँखों मे अश्कों की थोड़ी बारिशें भर दो
हमको भी इश्क़ हो कभी चंद ऐसी ख्वाहिशें कर दो
पर हमको वफ़ा न आई हम मुद्दत से बेवफ़ा हैं
बस साँसों का बोझ बाक़ी है जीते ही हम बेवज़ह हैं
क्यो जीते हम बेवज़ह हैं
क्यों जीते हम बेवज़ह हैं
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