वेणु

*वेणु*

प्रियतम !!यह जो वेणु है न, जाने क्या कर देती है।जैसे ही भीतर उतरती है , इस स्पर्श, आह!! प्रियतम के अधरामृत का पान करती हुई।उनके हृदय की समस्त लालसाएँ कह रही हो जैसे। जैसे प्राण हर भी रही है , प्राण भर भी रही है। जैसे ही तुम्हारा यह स्पर्श हृदय तक पहुंच रहा भीतर प्रेम सुधा भर भर तृषित भी कर रही ,जितनी प्रेम सुधा भीतर उतनी ही व्याकुलता भर रही प्राणों में।जैसे हृदय का चेतना का सम्पूर्ण हरण ही कर लिया हो इसने। अब प्राण रहेंगे ही न ।

   प्राण भर भी यही रही है। एक एक रव जो भीतर उतर रहा, भीतर एक ही नाम सुन रहा राधा रआआधा राआआआ धआआआआ
..............
राधा राधा राधा राधा …...........इतना मधुर नाम ,जैसे प्राणों के प्राण , मेरे प्राणों के प्राण यह *वेणु*

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून