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हरिहौं कबहुँं साँची पुकार लगाऊँ
साँचो नाम न निकसै हिय सौं बिलपत रहूँ अकुलाऊँ
बिलपत रहूँ अकुलाऊँ हरिहौं बड़ौ ताप हिय कौ आवै
साँचो नाथ बिसराय रही बाँवरी जन्म जन्म दुख पावै
अबहुँ नाथा कीजौ सम्भार कछु भजन की रीत बतावो
बाँवरी पड़ी भव सिन्धु डोलत हरिहौं आपहुँ आय बचावो

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