गम्भीरा
*प्रेम की गम्भीर स्थिति गम्भीरा*
श्रीकृष्ण राधा प्रेम आस्वादन को गौर रूप में लीला करते हैं, तब वह राधा भाव राधा अँग काँति को धारण किये हुए हैं। श्रीराधा प्रेम सिन्धु का कण मात्र आस्वादन कर ही श्रीकृष्ण उस सिन्धु में मीन वत हो निरतंर तृषित होते हैं , उनकी मधुरिमा से मधुर मधुर होते हुए द्रवित हो जाते हैं। प्रेम रस का यह आस्वादन क्षण क्षण बढ़ता जाता है वहीं श्रीकृष्ण गौरलीला में गम्भीरा लीला का आस्वादन करते हैं। श्रीकृष्ण लीला में श्रीराधा प्रेम का आस्वादन उन्हें विह्वल रखता है जिसके लिए वह पुनः पुनः तृषित , पुनः पुनः व्याकुल हो रहे हैं। उनकी यह व्याकुलता की चरम सीमा गौर रूप में गम्भीरा लीला में आस्वादनीय हुई है जहाँ वह श्रीराधा प्रेम माधुरी का क्षण क्षण आस्वादन कर रहे हैं।प्रेम की नव नव तृषा, नव नव आस्वादन , नव नव गाढ़ता, नव नव मधुरता , नव नव रसमयता तथा गम्भीर्यशाली रूप ही गम्भीरा लीला का आस्वादन है।
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