14
हरिहौं साँची देयो हिय पीर
साँचो बिरह हिय कबहुँ फूटै कबहुँ क्षण क्षण बनै अधीर
कबहुँ क्षण क्षण बनै अधीर साँची चटपटी उर लागै
लोभ मोह मद मत्सर सारे बाँवरी कबहुँ हिय ते भागै
कोटि कोटि अवगुण होय बाँवरी बोझ उठाई भारी
हरि नाम न मुख सौं गाई बाँवरी जन्मन जन्म बिगारी
Comments
Post a Comment