कबहुँ होय छुटकारा

हरिहौं कबहुँ होय छुटकारा
भजनहीन बौराई रहै बाँवरी सगरौ जन्म बिगारा
पुनि पुनि फिरै चुरासी फेरत होवै भव रोग पसारा
हा हा नाथा अबहुँ रह्यौ बिलपत जीवन लागै खारा
हिय माँहिं अग्न जरावै ऐसे गिरै जौ कोऊ अंगारा
हा हा नाथा करत बाँवरी करौ अबहुँ छुटकारा

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