अपने
अपने गम को कुछ इस कदर आज सज़ा लिया मैंने
मचले से दिल को देकर तस्सली मना लिया मैंने
चुन चुन कर सजाया सभी दर्दों आहों को
जिन्दगी का इक गुलदस्ता बना लिया मैंने
अपने गम को........
जानते हैं हम उनको यह चेहरा नावाकिफ गुज़रा
चेहरे पर एक नया चेहरा लगा लिया मैंने
अपने गम को.........
यूँ तो आबादियों के जश्न न किस्मत में हुए
अपनी बर्बादियों का ही जश्न मना लिया मैंने
अपने गम को.........
न सम्भल पाते तो बिखर जाते ये सदा के लिए
ईंट पत्थरों का इक मकान बना लिया मैंने
अपने गम को..........
हाल ए दिल अपना भी क्या किसी से कहते हम
इक छोटी सी नज़्म को गुनगुना लिया मैंने
अपने गम को .........
अब न पुकारेंगे जान गए हैं कि औकात नहीं अपनी
उठते हुए बेकरार अरमानों को दबा लिया मैंने
अपने गम को..........
अब कोई आवाज़ न देना यहाँ कोई बाक़ी न रहा
मुझमें जिंदा था जो अब गहरा सुला लिया मैंने
अपने गम को..........
अब जितना चाहो खेलो मेरे दिल से तुम
ख़ुद को बस मिट्टी का खिलौना बना लिया मैंने
अपने गम को कुछ इस कदर आज सज़ा लिया मैंने
मचले से दिल को देकर तस्सली मना लिया मैंने
Comments
Post a Comment