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हरिहौं तुम बिनु होऊँ अनाथा
आपहुँ कीजौ सम्भार हरिहौं कीजौ मोय सनाथा
जन्म जन्म भुलाई हरिहौं बाँवरी जन्म जन्म बिगारी
साँची पीर उठी न उर अंतर हरिहौं न कबहुँ पुकारी
जगति फिरै षडरस मगन बाँवरी साँचो नाथ बिसारी
मुख राखी जिव्हा जूठन पावै कबहुँ हरिनाम न उच्चारी
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