न रीति भजन की जानी

हरिहौं न रीति भजन की जानी
भजनहीन होय इत उत डोलूं करूँ सदा मनमानी
अवगुण की खान होऊँ नाथा मूढ़ा अधमा अभिमानी
बिरथा कीन्हीं स्वासा स्वासा न होय नाम कौ गानी
कबहुँ मन लगै हरिभजन माँहिं छांड सकल शैतानी
लिये सुमिरनी मन इत उत भाजै करूँ सदा बेईमानी

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