12 अपार पीरा
हरिहौं पीरा देयो अपार
कबहुँ जरै हिय गीली काठ सौं बाँवरी करै बिचार
धिक धिक जीवन होय बाँवरी भजनहीन अति मूढ़े
कौन भाँति हिय प्रेम सरसावै प्रेम भाव होय गूढे
हा हा नाथा बिलपत अबहुँ जन्म जन्म कौ निर्धन
खाली आय रही खाली लौटी कबहुँ मिले तोय प्रेमधन
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