8 कोयला
हरिहौं हम भ्यै कोयला कारो
बिरथा स्वासा स्वासा कीन्हीं मानुस जन्म बिगारो
मानुस जन्म बिगारो बाँवरी ढोंग क्षण क्षण कीन्हीं
स्वांग धराय फिरै भक्तन कौ कबहुँ हरिनाम न लीन्हीं
कौन विध होय तेरौ छुटकारा मूढ़े प्रसंसा सुनि फूले
माटी की पुतरी तो बाँवरी काहे तोय सगरी बाता भूली
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