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हरिहौं भजन बिना दिन बीते
भर भर लेय गये नाम को धन सब हम अजहुँ रहै रीते
हम अजहुँ रहै रीते हरिहौं गये काम लोभ मद मारे
मानुस देह कौ मोल किये न अजहुँ सगरौ जन्म बिगारे
कोऊ उपाय बनत न बाँवरी गुरु चरणन उपजै न प्रीति
प्रेम की गागर न भरे प्रेम सौं बाँवरी जाने कबहुँ रस रीति

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