बेवजह 2
तुमसे बिछड़कर भी मेरी यह आँख ज़रा न रोई
सच कहती हूँ अब तलक मुझे इश्क़ हुआ न कोई
जो मुझको इश्क़ होता तो जान तड़पती रहती
गम होता जुदाई का गीली लकड़ी सी सुलगती रहती
सुनती हूँ आशिकों का हाल बुरा होता है
अश्कों का सावन बहता है जब कोई रोता है
नहीं भूख प्यास लगती न सजना सँवरना भाता
दुनिया का कोई सुख भी उनको नहीं लुभाता
जो खुद पर नज़र गिरे तो सच मे शर्मसार हैं हम
बिना इश्क़ के जी रहे हैं सचमुच बेकार हैं हम
देखो मेरी बेवफाई तुमसे भी छिपी नहीं है
सच कहती हूँ इश्क़ कोई मुझको नहीं नहीं है
काश इस दिल मे कभी उठती कोई कसक सी
महके से हम कभी रहते जो होती इश्क़ की महक सी
पर हमको वफ़ा न आई हम मुद्दत से बेवफ़ा हैं
बस साँसों का बोझ बाक़ी है जीते ही हम बेवजह हैं
क्यों जीते हम बेवज़ह हैं
क्यों जीते हम बेवज़ह हैं
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