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हरिहौं कौन द्वारे जाऊँ
तुम्हरै बिन न नाथा कोऊ कौन कौ टेर बुलाऊँ
कौन कौ टेर बुलाऊँ हरिहौं तुम पतितन कौ नाथा
जो बिसराय दिय हौ अजहुँ बाँवरी होय गई अनाथा
तुम्हरै होवत होऊँ अनाथा ऐसो न होय कोऊ भाँति
चरणन चेरी कीजौ हरिहौं मिले विकल हिय कौ शाँति

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