11 जगति

हरिहौं जगति फिरी बौराई
भजनहीन रही पतित बाँवरी जगति रहै लुभाई
जगति रहै लुभाई बाँवरी षडरस लागै तोय नीको
लौटत फिरै जगत वीथिन माँहिं हरिनाम लगै फीको
कबहुँ बाँवरी नाम रस आवै लोभ न हिय उपजावै
मूढ़े अबहुँ जाग निद्रा सौं बिरथा जन्म गमावै

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