श्रीकृष्ण माधुरी

*श्रीकृष्ण माधुरी*

*श्रीकृष्ण हमारे प्राणों की प्राण संजीवनी* हमारी प्राण संजीवनी ,हमारी प्राणा , प्राणेश्वरी, प्राण पोषिणी, प्राण आधारिणी, प्राण राखिनी, प्राण सुगंधिनी, प्राण धारिनी, प्राण वासिनी, प्राण उल्लासिनी , प्राणा प्राणा प्राणा श्रीकिशोरी जु के प्राण हैं। श्रीकृष्ण की रूप माधुरी का पान जीव अपनी भावना से न कर श्रीकिशोरी जु की मंजरी होकर कर सकता है, जिससे यह माधुरी न्यून न होकर नित्य वर्धित है।

   श्रीकिशोरी जु और उनके प्राण वल्लभ नवल किशोर अपनी सेज पर विराजित होकर पासा खेल रहे हैं। उनका यह मनमोहक खेल आनँद पूर्वक चल रहा है क्योंकि आज जीतने वाले को अपने हृदय का श्रृंगार करना है। श्रीराधा पासा फेंकती है और जीत जाती हैं।तुरंत ही प्यारी जु अपनी शैया से उठ श्रीकृष्ण चरणों की ओर आने लगती है तो मञ्जरी उन्हें बैठने को चौकी देती है। जिस पर बैठ किशोरी जु आज अपने प्राण वल्लभ के चरण कमलों को अपने हाथों में ले लेती हैं।आह!!मेरे प्राण वल्लभ के सुकोमल चरणकमल, जिसे देख प्यारी जु आनन्दित हुई जा रही है। श्रीवल्लभ को सुख देने हेतु उनके नेत्र श्रीप्रियतम के नेत्रों में समाने लगते हैं और अपने कर कमलों से वह प्राण वल्लभ के चरण कमलों को स्पर्श कर रही है.......

पूरी लीला रस में डूबने और गहन भाव रस लहरियों के अनुभव हेतु पूरा श्रवण कीजिये।

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