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हरिहौं भजन हीन बौराई
फिरत रही जग वीथिन माँहिं बाँवरी साँचो नाथ बिसराई
साँचो नाथ बिसराई बाँवरी तेरौ कौन विध होय छुटकारा
क्षण कौ साँचो भजन बनै न कबहुँ मानुस जन्म बिगारा
धिक धिक मूढ़े पतित पामरी काहे माता पीड़ा दीन्हीं
भजन हीन सुभाय होय तेरौ ऐसो काहे जन्म रही लीन्हीं
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