साँची प्रेम पिपासा न होई

हरिहौं साँची प्रेम पिपासा न होई
बाँवरी पतिता भोगी भारी जन्म जन्म रही सोई
जन्म जन्म रही सोई मूढ़े साँचो धन रही बिसराई
प्रेम न होय तेरे उर अंतर बिरथा जन्म गमाई
कबहुँ नाम भजन तोहे सुहावै कबहुँ विषय लोभ छूटै
कबहुँ हिय प्रेम रस उमगावै कबहुँ प्रेम कौ अंकुर फूटै

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