प्रेमी की रुचि ओर स्वाद

*प्रेमी की रुचि और स्वाद क्या है*

श्रीयुगल कृपा से जब प्रसाद वत किसी चेतना की अभिन्नता हो जावै , उसे युगल रस प्राप्त हो जावै तब उस प्रेमी की सभी रुचियाँ केवल उसके प्रियाप्रियतम का नाम , भजन , सेवा, चिंतन ही हो जाती है। संसार का भयंकर से भयंकर दुःख भी प्रेमी को दुखी नहीं कर सकता जो अपने श्रीयुगल के रस में डूबा हुआ हो। प्रेमी को संसार की अन्य कोई वस्तु लुभा नहीं सकती, जिसके प्राण श्रीयुगल हो चुके हों।प्रेमी का आश्रय और विषय केवल उसके प्रेमास्पद के युगल पाद पदम ही होते हैं।प्रेमी का स्वाद अपने प्रियतम का निहारण है जिससे उसकी चेतना का पोषण होता है।अपने प्रियतम श्रीयुगल की स्मृति ही उसे प्रफुल्ल और आह्लादित रखती है।प्रेमी का अपना कोई निज स्वाद रहता ही नहीं है बल्कि अपने प्राण श्रीश्यामाश्याम का रँग, इनका बिहार, इनका दर्शह्न, इनकी झूलन , इनकी फूलन ,इनका आस्वादन ही उसका जीवन हो जाता है।वह अपने हृदय के हिंडोरे पर श्रीयुगल को बिठा , प्रति क्षण लाड लड़ाता हुआ , अपनी प्रत्येक चेष्ठा श्रीयुगल चरणों मे ही समर्पित किये रहता है।

श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!
श्रीवृंदावन श्रीवृंदावन श्रीवृंदावन !!

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