जगति फिरै बौराई
हरिहौं जगति फिरै बौराई
साँचो नाम धन संचय न कीन्हीं झूठी करै कमाई
बिरथा कीन्हीं स्वासा स्वासा देखो न मेरी अधमाई
बाँवरी कीट विष्ठा माँहिं लौटत दियो हरिनाम भुलाई
भव रोग होय अति गाढ़ा हरिहौं कौन विध होय छुटाई
मुख सौं कबहुँ हरिनाम न लीन्हीं जिव्हा चाण्डालिनी पाई
Comments
Post a Comment