बिरथा स्वासा कीन्हीं
हरिहौं बिरथा स्वासा कीन्हीं
जग वीथिन लौटत रही निशदिन रात्रि निद्रा लीन्हीं
भोग निद्रा सोवत जन्म सौं मानुस देहि बिरथा कीन्हीं
स्वासा मिली हरिभजन कौ मूढ़े विषय समाय दीन्हीं
कौन भाँति होवै छुटकारा भव सांकली चरणन लीन्हीं
बाँवरी नाम कौ साबुन धोये कबहुँ चुनर दागी कीन्हीं
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