तेरे इश्क़ में

हम तेरे इश्क़ में घायल हुए बैठे हैँ
और चाहते हैँ ज़िन्दगी धोखा दे जाए
क्यों जिएँ पल भी अब बगैर तेरे ही
काश अब मरने की तलब हो जाए
नज़रों से कत्ल करना ही था
तो पहले दर्द ए दिल की दवा तो बताते
अब तो हाल कुछ यूँ कर गए हो तुम
हम ना ज़िंदा और ना मुर्दो में शुमार हुए
क्या गज़ब की अदा है तुम्हारी भी
हाल भी बेहाल किया और हाल नहीं पूछा
एक बार देख तो लेते नज़र भर तुमको
यूँ भी अब ज़िन्दगी से कोई चाह नहीं
सब ख्वाहिशें अब तुझ में ही सिमट गयी मेरी
एक तू रूबरू हो मेरे और मैं ना रहूँ बाक़ी

कह दूँ तुम सम्भाल लोगे मुझे
हाँ अब तुम्हारे बिन किसे कहूँ

क्या वजूद मेरा तुम्हारे बिन महबूब मेरे
क्यों हम दिल पर जख़्म खाए फिरते हैं
तू नहीं तेरा इंतज़ार तो है
बस उसी को दिल लगाए फिरते हैं

क्यों ये सांसे भी बोझ लगने लगती हैं
दिल में दर्द तेरी जुदाई का है
और कोई गम नहीं ज़माने का मुझे
डर बस तेरी रुस्वाई का है

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