तू समन्दर है
तू समन्दर है मुझे एक कतरा करदे
मेरे महबूब इश्क़ में बस इतना करदे
नज़र क्या लगेगी साहिब आपको
मेरी नज़र में ही आ जाओ ना
हाय बेरुखी कहाँ आई महबूब को मेरे
मुझे ही सज़दा करने का इल्म नहीं आया
तेरे इश्क़ में तेरे सिवा कुछ याद नहीं
नाम तेरा लब पर और कोई फरियाद नहीं
जिसको इश्क़ हुआ उसको लगे सब मीठा
मुझसे पूछोगे तो शहद भी खारा लगेगा
तेरी खुशबू कब घुले मेरी सांसों में
मेरे महबूब मुझे आज बाँहों में भर लो
खो जाऊँ तुझमें यूँ अपना लो मुझे
मेरे हो जाओ या मुझे अपनी कर लो
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