हे मृगनयनी

हे मृगनयनी हे मधुबैनी श्यामा किशोरी मेरी प्यारी
कृपा कोर की कीजौ लाडली तू मेरी बरसाने वारी

कोई विधि नहीं जानू स्वामिनी बस इतनी हूँ अभिलाषी
सेवा तेरी में बीते जीवन कीजौ श्यामा मोहे दासी
भव सिंधु में डोल ना जाऊँ कीजौ श्यामा मेरी रखवारी
हे मृगनयनी........

जप नहीं तप नहीं कोई विधि नहीं श्यामा मैं मुर्ख अभिमानी
आन पड़ी हूँ शरण तिहारी तोहे श्यामा अपनी जानी
पात्र कुपात्र नहीं तुम देखी जो भी पड़ा है शरण तुम्हारी
हे मृगनयनी........

मोहे आशा अब तेरी श्यामा पद पंकज की सेवा दीजौ
तेरी ठौर नहीं और कोई मेरा अब मोहे अपनी दासी कीजौ
आन बसो व्याकुल नयनों में संग तेरे मोहन गिरधारी
हे मृगनयनी........

जय जय श्री राधे

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