दर्द दर्द दर्द
क्यों लौटा देते हो हर बार ख़ाली सा हमें
कुछ अश्क़ ही दे दिया करो जो बहाते रहें
हम नहीं आते इस डर से तेरी चौखट पर मोहन
की तुझे एक बार देखकर लौटना भी मौत से कम नहीं
बड़ी आसानी से तुझे बेदर्द कह दिया मैंने
अब अपनी औकात देखी तो लफ्ज़ खत्म हुए
क्या है मेरी औकात के चाँद को छू लूँ
तेरी और से आने वाली हवा को भी सलामी ना दी
मैंने पुछा उनसे इश्क़ का कोई और नाम भी होता है
बड़ी जल्दी से उनके लबों पर एक ही बात थी
दर्द दर्द दर्द......
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