अपने अश्कों से

अपने अश्कों से तेरा दामन नहीं भिगोना है
गर तुझे दर्द हो मुझको तेरा नहीं होना है
अपने अश्कों से.....

नहीं इश्क़ आया कभी मुझको बस गुमान रहा
गुस्ताखियाँ होती रहीं क्यों दिल नादान रहा
अब मुझे दर्द ए इश्क़ में दिल डुबोना है
अपने अश्कों से......

तेरी इनायतें हुई कितनी मैं बयान कैसे करूँ
तेरा इश्क़ देखा ऐसा की गुमान कैसे करूँ
मुझे इस दर्द की बस्ती में बाशिंदा होना है
अपने अश्कों से.......

तू आबाद रहे महबूब मेरे जहां भी रहे
दिल में कसक रहे मेरे तेरा निशाँ भी रहे
मुझको मंजूर है अंजाम जो मेरा होना है
अपने अश्कों से......

मेरी गुस्ताखियों पर नज़र नहीं करना सनम
तेरी चौखट पर ही निकले अब मेरा आखिरी दम
अपने गम दो मुझे तेरे होंठों की हंसी होना है
अपने अश्कों से......

माना है गुस्ताखियाँ करनी ही आदत मेरी
देखती हूँ बेसब इश्क़ ही इनायत तेरी
मुझको अब तुझमें ही महबूब फनाह होना है
अपने अश्कों से.....

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