आपकी तारीफ़

क्या लिखूं तारीफ़ मैं ए यार मेरे
लफ़्ज़ों में तुम समा नहीं सकते
तुमने अब इतना इश्क़ किया हमसे
कितना ये लिख कर बता नहीं सकते

हाँ जी रही हूँ इश्क़ को तेरे अब
ये भी आपकी ही मोहबत है
है एहसास मुझे अपनी गुस्ताखियों का
जो भी है आपकी मोहबत है

जाने क्या देख तुम इश्क़ कर बैठे
नहीं काबिल की तुमको इश्क़ करूँ
तुम्हारे इश्क़ से ही अब मैं जिन्दा हूँ
नहीं इल्म कोई तुम्हें सजदा करूँ

फिर भी तुम अपनी मोहबत निभाते हो
चले जाते हो फिर लौट आते हो
तुम नहीं छोड़ सकते मोहबत अपनी
इस मोहबत को ही ज़िन्दगी बनाते हो

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