इंतज़ार की इंतहा सांवरे
इंतज़ार की भी इंतहा होती होगी इश्क़ में
तुम कहो तुम तो इश्क़ के एहसास से वाकिफ हो
मुझे तो अब तलक कोई एहसास न हुआ
काश मेरे दिल में भी थोड़ी सी मोहबत होती
या तो बता दो कोई तारीख़ अपने मिलने की
या तेरे बगैर जीने से अच्छा मौत दे दो
तुम जो पूछोगे की इंतज़ार चाहिए या मौत
तो मौत ही दे दो इंतज़ार में जिंदगी जा रही
अब तलक ना आया सकून रूह को
शायद मौत का आगोश ही थोड़ी तस्सली दे
मत लौटाना कभी तेरे कूचे पर आए तो
है तुझे इश्क़ तो एक बार बुला ले
जाने कब तुझसे मोहबत हो मुझे
ये भी अच्छी आस लगा दी जिन्दा रहने को
अब तो ये आलम है ना मौत है न ज़िन्दगी
जब इश्क़ नहीं तो ये बेकरारी क्यों
हाँ कत्ल करदो इस दिल में उठती हसरतों का तुम
जाने कब से तेरा नाम पुकार रहा है
कह दो एक बार इश्क़ नहीं तुमको
क्यों दिल को मेरे ये इतना यकीन है
तुम करते हो बेइंतहा मोहबत मुझसे
फिर तू आसमान और ये दिल जमीन है
अब और नहीं सहा जाता तेरी जुदाई का गम
मदहोशी में ये दिल क्या क्या आरज़ू करता है
तू कहे तो एक बार भी लब पर तेरा नाम नहीं आए
मगर एक कमबख्त सा दिल है जो सुनता नहीं
देखो अब तो अश्कों ने भी आना छोड़ दिया
तुम भी रुख बदलो साहिब पत्थर से इश्क़ क्यों
एक बार अपने आगोश में समेट लो मुझको
मेरे साहिब यूँ कतरा कतरा मौत ना दो
नहीं सुनता कुछ शायद वो महबूब मेरा
चल गम ए दिल फिर से झमेलों में उलझ जा
अब ना कहेंगे की मुझको कभी इश्क़ हो
तेरे इश्क़ वाले अंजाम देख लिए मैंने
एक बात तो कह दो नहीं इश्क़ मुझसे
जाने ये भीतर उबलता हुआ सा क्या है
जो रूह को कब से जला रहा है मेरी
भीतर कोई तूफ़ान दबा हुआ सा क्या है
तुम भी वफ़ा छोड़ दोगे कभी
नहीं ये बात मेरी रूह गवारा नहीं करती
तेरे आने का इंतज़ार रहेगा मुझको
जाने तकदीर भी कोई इशारा नहीं करती
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